Monday, March 23, 2015

Kabir

कबीरदास

कबीर गुरू को ही अत्यंत महत्व दिया है। क्योंकि गुरू ही हमारा मार्गदर्शन करेगा।
जैसे ----
गुरू कुम्हार सिष कुम्भ है, गढ़ गढ़ काढ़ै खोट
अंतर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट।।

माया दीपक नर पतंग, भ्रमि-भ्रमि इवै पडंत
कहै कबीर गुरू ग्यान थैं, एक आध उभरंत।।